भारत मे खेलों का विकास कैसे कर सकते हैं

हम सभी जानते हैं कि भारत लगभग सभी तरह के खेलों में बहुत पिछले हुआ है। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। इसमे एक बहुत बड़ा कारण है कि भारत मे खेलों की संस्कृति नही है। हम सब समझते है कि खेल खेलने से कोई फायदा नहीं है यह सिर्फ समय की बर्बादी है। अगर हम सब आसपास की जिंदगी देखें तो यह सही लगता है। जैसे लगभग सभी लोग बचपन मे स्कूल के बाद कोई न कोई खेल खेलते हैं परंतु वो खेल सिर्फ मनोरंजन के लिए खेलते हैं। उन्हें कोई भी बताने वाला नही है बस बच्चे खेलते रहते रहते हैं। स्कूल के बाद यही खेल छूट जाता है क्योंकि जो बच्चे स्कूल के दिनों में खेलते थे वो आगे की जिंदगी सवारने में लग जाते हैं।
बड़े शहर में खेलों का कुछ माहौल भी है परंतु छोटे शहर और गांवों में तो खेलों का कोई माहौल नही है। सब लोग अलग अलग क्षेत्रों में अपना कैरियर बनाने में लगे होते हैं।
अगर हम देखे तो खेलों की ओर लोगो का रुझान सिर्फ इस लिए नही है क्योंकि लोग खेलो में पैसा नही दिखता है और उसमें कोई भविष्य भी नही दिखता है। हां, इन्ही छोटे शहरों और गांवों से लोग अपने इच्छा सकती से आगे बढ़ जाते हैं जैसे कि दुत्ती चंद और हिमा दास।
अगर भारत मे खेलो को बढ़ावा देना है तो पहले छोटे शहरों और गांवों में खेल की ढांचा गत सुविधा का विकाश करना होगा। जैसे गांव में लगभग सभी जगह सरकारी विद्यालय हैं अतः सभी विद्यालयों को खेलने की जगह या मैदान हो यह सरकार को निश्चित करना चाहिए। साथ मे सभी विद्यार्थियों को कम से कम एक मैदान में खेल जाने वाला खेल विषय के रूप में चुनना ही होगा।
फिर खेलों में प्रथम आने वाले छात्रों को इनाम नकद इनाम के साथ साथ प्रखंड स्तर के प्रतियोगिता में हिस्सेदारी का मौका। 
यहां भी प्रखंड स्तर पर जितने वालो को इनाम के साथ साथ आगे बढ़ने का मौका।
यहाँ पर खेलने वालों को दो तरह की दिक्कत का सामना करना होता है और वो है भ्रष्टाचार और तिरस्कार।
जैसा हम सब जानते है भ्रष्टाचार हमारे खून में समाहित हो चुका है और यही हाल सभी लोगो का है और विद्यालय और शिक्षक भी अछूते नही है। आज भी जो थोड़ी बहुत प्रतियोगिता विद्यालय में होती है तो शिक्षक छात्रों को या तो इनाम ही नही देते या देते भी हैं तो निर्धारित रकम से बहुत ही कम। इसमे सरकार को समाचार पत्रों के द्वारा सभी लोगो को जागरूक करना होगा कि किस स्तर पर कितना इनाम मिलेगा और क्या क्या सहूलियत मिलेगी।
दूसरी दिक्कत होती है तिरस्कार की। जैसा हम जानते भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है जातिवाद। बड़े शहर में यह सब काम देखने को मिलता है परंतु छोटे शहर और गाँव मे तो बहुत ही ज्यादा जातिवाद देखने को मिलता है। जिस गांव में जिस जाति का बहुल है वही जाति के लोगो को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
और अगर कोई दूसरी जाति का आगे बढ़ना चाहे तो उसे तिरस्कार।
इससे निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि जिस गांव में जितने जाति के लोग हैं उतने जाति के एक छात्र को होना ही चाहिए। अगर कही पर एक से ज्यादा छात्र योग्य है तो सभी योग्य छात्रों को आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।
यह नियम गांव से शुरू होकर, पंचायत, प्रखंड, फिर जिला, राज्य और अंत मे पूरे देश के लिये समान रूप से लागू होना चाहिए।
मुझे लगता है कि कुछ ही बरसों में देश से एक से बढ़ कर एक धुरंधर खिलाड़ी निकलेंगे।


Comments

Popular posts from this blog

ट्रेन में आमलोग भेड़ बकरियों की तरह यात्रा करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं

बिहार में यात्री सड़क परिवहन का बुरा हाल

मरना एक कालिंद बलोच का