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भारत मे खेलों का विकास कैसे कर सकते हैं

हम सभी जानते हैं कि भारत लगभग सभी तरह के खेलों में बहुत पिछले हुआ है। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। इसमे एक बहुत बड़ा कारण है कि भारत मे खेलों की संस्कृति नही है। हम सब समझते है कि खेल खेलने से कोई फायदा नहीं है यह सिर्फ समय की बर्बादी है। अगर हम सब आसपास की जिंदगी देखें तो यह सही लगता है। जैसे लगभग सभी लोग बचपन मे स्कूल के बाद कोई न कोई खेल खेलते हैं परंतु वो खेल सिर्फ मनोरंजन के लिए खेलते हैं। उन्हें कोई भी बताने वाला नही है बस बच्चे खेलते रहते रहते हैं। स्कूल के बाद यही खेल छूट जाता है क्योंकि जो बच्चे स्कूल के दिनों में खेलते थे वो आगे की जिंदगी सवारने में लग जाते हैं। बड़े शहर में खेलों का कुछ माहौल भी है परंतु छोटे शहर और गांवों में तो खेलों का कोई माहौल नही है। सब लोग अलग अलग क्षेत्रों में अपना कैरियर बनाने में लगे होते हैं। अगर हम देखे तो खेलों की ओर लोगो का रुझान सिर्फ इस लिए नही है क्योंकि लोग खेलो में पैसा नही दिखता है और उसमें कोई भविष्य भी नही दिखता है। हां, इन्ही छोटे शहरों और गांवों से लोग अपने इच्छा सकती से आगे बढ़ जाते हैं जैसे कि दुत्ती चंद और हिमा दास। अगर भारत मे खेलो को

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सरकार गाँव का विकास करने में पीछे क्यों हैं?

मैं बचपन से मीडिया और नेताओं से सुनता आया हूँ कि असली भारत गाँव मे रहता है। और भारतवर्ष की 70% जनता भारत में रहती है। और इन 70%जनता को बुनियादी सुविधाएँ भी मयस्सर नही हैं। बुनियादी सुविधा जैसे शुद्ध पेयजल, शिक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य। हालांकि कुछ राज्यो में ये चीजें बहुत अच्छी है पर ये वो राज्य हैं जो भारत के विकसित राज्यों में आते हैं। इसके पीछे मुझे लगता है सरकार की मानसिकता गलत है। क्योंकि सरकार उन्ही लोगो का ज्यादा ध्यान रखती है जहाँ से उसे अधिक टैक्स मिलता है और अभी तक सरकार को किसानों से नही के बराबर टैक्स मिलता है। इसी लिए कोई भी सरकार गांव के विकास पर ज्यादा ध्यान नही देती है। पर आप गौर करेंगे तो भारतीय सेना में सबसे ज्यादा सैनिक ग्रामीण क्षेत्र से ही आते हैं। सरकारी नौकरी में सबसे ज्यादा लोग ग्रामीण क्षेत्र से ही आते हैं। ग्रामीण क्षेत्र अभी तक मल्टीनेशनल कंपनियों के बाजार के रूप में जगह नही बना पाया है। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की खरीद क्षमता नही है इसी लिए भारत के ग्रामीण क्षेत्र मल्टीनेशनल कंपनी इसको अपना बाजार ही नही समझती है। वास्तव में भारत के ग्रामीण क्षेत्

बिहार में यात्री सड़क परिवहन का बुरा हाल

भारत मे लगभग सभी राज्यों में यात्री परिवहन की व्यवस्था वहां की राज्य सरकार संभालती है और लगभग सभी राज्यों की परिवहन व्यवस्था संतोषजनक है सिवाय बिहार के। क्योंकि की यहाँ यात्री सुविधा के नाम पर सिर्फ बिहार से जमशेदपुर(झारखंड) तक मेरसीडीज कि बस सेवा है और बिहार सरकार उसी का ढिंढोरा पिटती है। ऐसा नही है कि बिहार में यात्री परिवहन का इतना ही बुरा हाल था। मुझे याद है बचपन मे हर जगह जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित बसें ही थी। पर बिहार में यात्री परिवहन का बुरा हाल 1994 के आसपास होना शुरू हुआ जब परिवहन उद्योग से जुड़े एक व्यवसायी को बिहार का परिवहन मंत्री बनाया गया। और जैसा उम्मीद था उस व्यापारी मंत्री ने वही किया मतलब सरकारी बस परिवहन व्यवस्था को धवस्त कर अपना बस परिवहन को पूरे बिहार में फैला दिया। उसमे घी डालने का काम किया जब उस समय के मुख्यमंत्री के रिश्तेदार भी यात्री परिवहन के व्यवसाय में कूद पड़ा। उसने तो बिहार परिवहन को बर्बाद किया ही साथ मे बिहार परिवहन से जुड़े कर्मचारियों को भूखमरी की हालत में ला दिया क्योंकि की उसने कई साल तक कर्मचारियों को वेतन ही नहीं दिया। वर्तमान सरकार न

ट्रेन में आमलोग भेड़ बकरियों की तरह यात्रा करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं

जब भी ट्रेन से यात्रा करता हुँ तो सीट यात्रियों से भरी होती है। स्लीपर में एक सीट पर 3 यात्री के जगह पर 5 यात्री बैठे होते हैं। कोई वेटिंग टिकट लिया तो कोई जनरल टिकट लेकर रिजर्वेशन कोच में घुस गया है। ऊपर से बेशर्मी ये की जिनका आरक्षण है उसी को बैठने या समान रखने नही देता है। पर इतनी घोषणा होने के वावजूद रेलवे यात्रियों के लिए शहुलियातें क्यों नही बढाता है। जहाँ तक हमे पता है रेलवे की हालत किसी से छिपी नहीं है। फिर भी क्यों सुधार नही हो रहा है थोड़ा सा मंथन करने पर कई कारण लगे। जिसमे सबसे पहला है कि कुछ भी कर लो हम नही सुधरेंगे। क्योंकि हमें किसी का डर नही है। और इसमें सच्चाई भी है। रेलवे कर्मचारी खुद सुधारने को तैयार नही हैं।क्योंकि इनको कोई देखने वाला नही। जरूरत ये है कि हर स्तर पर निगरानी हो ताकि कोई गलत नही कर पाए। रेलवे सिर्फ राजधानी और शताब्दी जैसी कुछ ही ट्रेनों को वरीयता नही दे बल्कि सभी ट्रेनों को समान वरीयता नहीं दे।

इंडियन रेलवे को देरी से चलने पर फायदा किसका होता है

जब जब ट्रेन से यात्रा करता हुँ और ट्रेन देरी से चलती है तो सोचता हूँ कि भारतीय ट्रेन के देरी से चलने पर किसका फायदा होता होगा और किसका नुकसान होता होगा। कुछ सोचने के बाद जिनका फायदा और नुकसान है उसका एक निष्कर्ष निकाला। नुकसान तो सिर्फ आमलोगों का और ट्रेन से चलने वाले यात्रियों का हैं। और फायदा कई लोगो का है। जिनमे से अधिकांश परोक्ष रूप से हैं। जब ट्रेन देरी से चलती है तो यात्री को बजट गुस्सा आता है जिससे उनका ब्लड प्रेसर बढ़ जाता है। धीरे धीरे ये एक बीमारी में बदल जाता है। वैसे आम आदमी को ये सब पता ही नही चल पाता है। क्योंकि वो समझता है कि कई और कारण से बीमार हुआ है। और सच भी वही है बस ट्रैन की देरी के कारण बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर एक हिस्सा है। और इस कारण डॉक्टर और दवा बनाने वाली कंपनी को फायदा होता है। उसी तरह ट्रैन जितना देर होती है उतना ही खाने पीने वाला समान बिकता है। और जैसा हम सब जानते हैं ट्रैन में प्रतिदिन 1 करोड़ से ज्यादा लोग यात्रा करते हैं और लगभग 90% ट्रेनें देरी से चलती है। मतलब लगभग 90लाख लोग खाने पीने वाली चीजों को मजबूरन खरीदते हैं। ट्रैन के देरी से चलने पर ट्रेन के ड्र

इंडियन रेलवे को सभी ट्रेनों को राजधानी में तब्दील कर डीएनए चाहिए

आज नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा हुँ। ये ट्रैन 6घंटे की देरी से ही आनंद विहार टर्मिनल से खुली। और 8 घंटे से ज्यादा हो गयी है ट्रेन अभी तक कानपुर भी नही पहुची है। ट्रैन की जो गति है वो किसी बैलगाड़ी जैसी है। कुछ देर सही चलने के बाद खड़ी हो जाती है। ऊपर से 1घंटा ट्रेन रोक कर राजधानी एक्सप्रेस को पास करवायी जाती है। जिस गति से राजधानी निकलती है मानता हूं कि हर ट्रैन राजधानी होती। किसी को भी ज्यादा परेशानी नही सभी ट्रेनें जूम जूम कर निकलती और लोग अपने गंतव्य पर सही समय से पहुंच जाते।