ट्रेन में आमलोग भेड़ बकरियों की तरह यात्रा करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं

जब भी ट्रेन से यात्रा करता हुँ तो सीट यात्रियों से भरी होती है। स्लीपर में एक सीट पर 3 यात्री के जगह पर 5 यात्री बैठे होते हैं। कोई वेटिंग टिकट लिया तो कोई जनरल टिकट लेकर रिजर्वेशन कोच में घुस गया है। ऊपर से बेशर्मी ये की जिनका आरक्षण है उसी को बैठने या समान रखने नही देता है।
पर इतनी घोषणा होने के वावजूद रेलवे यात्रियों के लिए शहुलियातें क्यों नही बढाता है। जहाँ तक हमे पता है रेलवे की हालत किसी से छिपी नहीं है। फिर भी क्यों सुधार नही हो रहा है
थोड़ा सा मंथन करने पर कई कारण लगे। जिसमे सबसे पहला है कि कुछ भी कर लो हम नही सुधरेंगे। क्योंकि हमें किसी का डर नही है।
और इसमें सच्चाई भी है। रेलवे कर्मचारी खुद सुधारने को तैयार नही हैं।क्योंकि इनको कोई देखने वाला नही।
जरूरत ये है कि हर स्तर पर निगरानी हो ताकि कोई गलत नही कर पाए। रेलवे सिर्फ राजधानी और शताब्दी जैसी कुछ ही ट्रेनों को वरीयता नही दे बल्कि सभी ट्रेनों को समान वरीयता नहीं दे।

Comments

Popular posts from this blog

बिहार में यात्री सड़क परिवहन का बुरा हाल

मरना एक कालिंद बलोच का